कविता
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है मुख्तलिफ हर कोई जिम्मेदारियों से आज,
सिर्फ हक की बात करने की नीयत क्या है.
हैं देखते हम बहुत ही बड़े-बड़े ख्वाब,
ये भी तो सोचें उसकी हकीकत क्या है.
दो कदम भी साथ चलने की फुरसत किसे है आज,
इतना बहुत की हाल ए तबीयत क्या है.
जब तक जिन्दा रहे पूछे न कोई हाल,
अब पूछते हैं उनकी वसीयत क्या है.
हर बार डालते हैं हम हाथ आग में,
ना सोचते बुजुर्गों की नसीहत क्या है.
कब तक निहारते रहेंगे दूसरों के दाग,
कब सोचेंगे उनकी जरूरत क्या है.
आज भी बहुत से बच्चे सोते हैं खाली पेट,
ना पूछे कोई मॉ की हसरत क्या है.
जिसने किया न हो कभी भी जिन्दगी में इश्क,
वो क्या जाने लुत्फ ए मुहब्बत क्या है.
हर शख्स लड़ रहा है जंग ए जिन्दगी हर पल,
कौन जाने ‘मिलन’ किसकी किस्मत क्या है.
— मिलन चौरसिया, मऊ.
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