कविता
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जियो स्वदेश के लिए,
मरो स्वदेश के लिए.
होम इस शरीर को,
करो स्वदेश के लिए.
भाव हो स्वदेश का,
चाव हो स्वदेश का.
स्वदेश वेश देश हित,
धरो स्वदेश के लिए.
स्वदेश ही आचार हो,
स्वदेश ही विचार हो,
स्वदेश में विदेश ना,
भरो स्वदेश के लिए.
स्वदेश आन-बान हो,
स्वदेश सुर हो तान हो,
स्वदेश बीज का वरण,
करो स्वदेश के लिए.
स्वदेशी राष्ट्र अस्मिता,
स्वदेशी में स्वतन्त्रता,
स्वदेशी शत्रु से सदा,
लड़ो स्वदेश के लिए.
–> मिलन चौरसिया *मिलन*
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